यह एक ऐसा दर्द है
जिसकी न कोई थाह
चीर कलेजा रख दिया
रह रह निकले आह
रह रह उठती हूक
वह मंज़र कैसा होगा
खेले जिसके संग
तड़पता देखा होगा
दिल देहलादे जो
वह चीखें गूंजी होंगीं
पथरा जाये आँख
नज़ारा देखा होगा
चीखा होगा मन
सलाखें भुंकती होंगी
ढेर शिशुओं का जब
तड़पता देखा होगा
रीति आँखों से
उसने सहलाया होगा
अंतिम बार उसे जब
माँ ने नहलाया होगा
पूछा होगा ईश से
चुप रहा वह कैसे
मासूम सी जानों को
मिटने दिया क्यूँ ऐसे
क्या था उनका दोष
करते थे हँसी ठिठोली
इंसानी वहशत बनी
जब, सीने की गोली
अब तो खालीपन है
हर आँगन हर ठाँव
आँसू ही अब मरहम हैं
रोये सारा गाँव
सरस दरबारी
बहुत दुखद ! इसीपर मेरी भी कविता पढ़िए !
ReplyDelete: पेशावर का काण्ड
हार्दिक आभार रविकर जी
ReplyDeleteमार्मिक रचना.
ReplyDeleteनई पोस्ट : कौन सी दस्तक
मार्मिक ...दिल को अंदर तक हिला दिया इस घटना ने
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक भाव ... सच में दिल दहला देने वाली घटना है ...
ReplyDeleteइंसानियत कहाँ जा रही है ...
बहुत ही मार्मिक रचना.
ReplyDeleteमार्मिक .......दिल को छू गयी
ReplyDeleteपेशावर की घटना पर बहुत मार्मिक और संवेदनशील रचना ....इस पर भी वह देश कुछ नहीं सीखता .
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