पिछले कुछ दिनों से सजीव बहुत चिड़चिड़ा हो गया था । सोमा जब भी लैपटाप लेकर बैठती , उसका चिड़चिड़ा पन और बढ़ जाता। सोमा छेड़ छेड़कर बात करने की कोशिश करती पर सजीव का पारा और चढ़ जाता ।
"क्या बात है सजीव, क्यों इतने शॉर्ट टेम्पेर्ड हो गए हो । ज़रा ज़रा सी बात पर उलझ जाते हो। आखिर किस बात से नाराज़ हो बताओ भी तो ।"
"किसी बात से नहीं। तुम्हारे पास तो मेरे लिए टाइम ही नहीं रह गया। जब देखो लैपटाप लेकर बैठी रहती हो।”
"कहाँ सजीव ? जितनी देर घर पर रहते हो तुम्हारे ही आगे पीछे घूमती रहती हूँ। जब बिज़ि रहते हो, तभी अपना काम लेकर बैठती हूँ।"
"कौन सा काम , म्यूचुअल हौसला अफजाई । यह भी कोई काम हुआ। न जाने कैसे कैसे लोग तुम्हारी पोस्ट्स पर कमेंट करते रहते हैं, और तुम स्माइलीस भेजती रहती हो ।"
"यह तुम्हें क्या हो गया है सजीव , यह मेरे मित्र हैं। और मैंने तो कभी ऐतराज नहीं किया जब तुम घंटों फ़ेसबुक पर चैट करते रहते हो । मैं तो सिर्फ उनके कमेंट्स के ऐवज में उनका शुक्रिया अदा करती हूँ । तुम इतने पढे लिखे होकर ऐसी बात कर रहे हो ।"
"बस यही तो । मेरा पढ़ा लिखा होना ही मेरे लिए अभिशाप बन गया है । अनपढ़ होता तो हाथ उठाकर अपनी बात मनवा लेता। पर पढ़ा लिखा होना ही मेरी बेड़ियाँ बन गया है ।"
सोमा अवाक थी।
सजीव दरवाजा भाड़ से बंद कर घर से बाहर निकल गया।
अहम का ब्रह्मराक्षस सामने खड़ा मुस्कुरा रहा था।
सरस दरबारी
अहम का ब्रह्मराक्षस। सटीक।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteआत्म प्रवंचना।
ReplyDeleteआभार आपका। सादर नमन ।
Deleteब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 01/04/2019 की बुलेटिन, " मूर्ख दिवस विशेष - आप मूर्ख हैं या समझदार !?“ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteहार्दिक आभार आपका
Deleteसटीक ...
ReplyDeleteचुभती हुई बात लिखी है और कितना कुछ कह जाती है ये कहानी ...
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteजो आपसी विश्वास और प्रेम इतना नाजुक होता है..वह शायद कभी था ही नहीं..
ReplyDeleteयकीनन...! आभार आपका अनीता जी
Deletebahut khoob
ReplyDeleteशुक्रिया रोशी जी..☺️
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