Thursday, November 20, 2014

प्रीत























ओस की वह बूँद
अपना हश्र जानते हुए भी
हर रात
बिछ जाती है
पृथ्वी के कण कण पर ...
...........
प्रीत जो ठहरी ...!!


सरस

9 comments:

  1. प्रीत से बढ़कर कुछ नहीं

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  2. क्या करे ओस भी...समय की पुकार जो है.

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  3. कितनी सुंदर बात सरस जी ...ईश्वरीय अनुभूति देती हुई ....कण कण मे एक ही है विस्तार ...!!

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  4. पृथ्‍वी के कण-कण पर प्रीत के रंग ..... बहुत खूब

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  5. प्रीत के नाम पर कितना कुछ हो जाता है ... जीवन प्रीत रहे ...

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  6. प्रीत को कण कण में बसी है। बस उसे देखने समझने के लिए एक खास नज़र चाहिए।

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  7. निर्मल ,तरल शीतलता बन कर बिखर जाना -कितना सार्थक नन्हा-सा जीवन !

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  8. ये धरती के आँसू है धारा बहती है रोज अपने प्रिय प्रभाकर के इंतेजार मे ...

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  9. वाह ... पलांश में सार्थक जीवन .

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