५४ साल लम्बी यादें........उतार चढ़ावों से भरीं, जिसमें बहुत कुछ बीता.....
कुछ फाँस सा असहनीय पीड़ा दे गया ....
कुछ अनायास ही खिल आनेवाली मुस्कराहट का सबब बन गया....
कुछ एक कविता बन मुखरित हो गया...
कुछ , बस यूहीं धूप में छाँव सा ठंडक पहुंचा गया ......
और यादों का यह काफिला , पृष्ट दर पृष्ट पूरा जीवन बन गया
जिसमें गाहे बगाहे, कुछ सुरीले, सुखद क्षण,
.....मेरे हिस्से की धूप बन गए.....
Thursday, November 20, 2014
प्रीत
ओस की वह बूँद
अपना हश्र जानते हुए भी
हर रात
बिछ जाती है
पृथ्वी के कण कण पर ...
...........
प्रीत जो ठहरी ...!!
प्रीत से बढ़कर कुछ नहीं
ReplyDeleteक्या करे ओस भी...समय की पुकार जो है.
ReplyDeleteकितनी सुंदर बात सरस जी ...ईश्वरीय अनुभूति देती हुई ....कण कण मे एक ही है विस्तार ...!!
ReplyDeleteपृथ्वी के कण-कण पर प्रीत के रंग ..... बहुत खूब
ReplyDeleteप्रीत के नाम पर कितना कुछ हो जाता है ... जीवन प्रीत रहे ...
ReplyDeleteप्रीत को कण कण में बसी है। बस उसे देखने समझने के लिए एक खास नज़र चाहिए।
ReplyDeleteनिर्मल ,तरल शीतलता बन कर बिखर जाना -कितना सार्थक नन्हा-सा जीवन !
ReplyDeleteये धरती के आँसू है धारा बहती है रोज अपने प्रिय प्रभाकर के इंतेजार मे ...
ReplyDeleteवाह ... पलांश में सार्थक जीवन .
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