Monday, May 3, 2021

तुम अब कूच की तैयारी करो...!



कोरोना इस शब्द से जितनी दहशत होती थी उतनी ही चिढ़ होने लगी है। बस कर भाई। यह कैसी प्यास है तुम्हारी जो बुझती ही नही। खप्परों खून पी गये, नर मुंडों का ढेर लगा पड़ा है, मरघट पटे पड़े हैं लाशों से, घरों में हाहाकार, दिलों में चीत्कार मचा है, पर तुमपर कोई असर नही हो रहा है, गिद्ध की तरह अब भी चोंच और पंजे गढ़ाए हो..!

लेकिन याद रखना, बार बार एक ही जगह पर चोट, उसे सुन्न कर देती है। हम भी सुन्न होते जा रहे हैं। और जिस दिन पूरी तरह सुन्न हो गए, तुम्हारा आतंक मिट जाएगा। नेस्तनाबूत हो जाओगे तुम। यह बात और है तब तक कितनों के घर बर्बाद कर जाओगे। 

आँगन से किलकरियाँ छीनी, सरों पर से छत, बड़ों का आशीष छीना तो कहीं जीवन से आश्रय।

 तुम पहली बार दहशत बनकर आये थे। लोग सहम गए थे, घरों में दुबक गए थे। उस गली से  दूरी रखते, उस मोहल्ले से न गुजरते जिसमें किसी को कोरोना हुआ होता। हउआ बन गए थे तुम। तुमने अपनी इज़्ज़त बना ली थी समाज में। लोग तुम्हारा मान रखते थे, दहशत ही से सही, पर कुछ इज़्ज़त थी तुम्हारी। अब लोग गालियाँ देते हैं तुम्हें, बद्दुआएं बरसती हैं तुमपर। 

तुम जब पहली बार आये थे, तो तुमने हमें हमारी गलतियों का एहसास  करवाया था। प्रकृति के साथ मिलकर कैसे रहा जा सकता है, यह पाठ पढ़ाया था। मछलियाँ तटों के करीब आ गईं थीं, पशु सड़कों पर विचरने लगे थे, पंछियों की बोलियाँ फिरसे रस घोलने लगीं थीं। बरसों से प्रदूषण के धुंध में छिपीं बर्फीली पहाड़ों की चोटियाँ दिखने लगीं थीं।आकाश, वायु जल सब  हमारा हस्तक्षेप न रहने से स्वच्छ प्रदूषण रहित हो गए थे।

 आश्चर्य आश्चर्य घोर आश्चर्य...यह भी तुम्हारी ही देन थी।

 सदैव अपनी दुनिया, सोशल मीडिया में लिप्त रहनेवालों को घर का , अपनों का महत्व समझाया था। घर की दाल रोटी में भी स्वाद है, यह जताया था। हम कितनी फिजूलखर्ची करते हैं, यह एहसास दिलवाया था। 

पर अब धिक्कार है तुमपर..!

तुमने इंसान को लालच का ऐसा घड़ा बनाकर छोड़ दिया, जिसका पेट भरता ही नही, तुमने मनुष्य को एक कफन नोच दानव बना दिया, जो बेबस, बीमार, मजबूरों का खून चूस रहा है। उनकी चिता पर अपनी रोटी सेक रहा है। लोग बीमारों को लेकर अस्पताल अस्पताल घूम रहे हैं, इलाज को तरस रहे हैं, और तुम्हें सिर्फ पैसा दिख रहा है...!

जिन अस्पतालों की तरफ कोई देखता न था, वह जीभर कर उगाही कर रहे हैं। ऑक्सीजन जैसी चीज किसे प्रकृति ने इफ़रात में दिया, उसीका मोल लगा काला बाजारी कर रहे हैं। लोगों की साँसों का सौदा कर रहे हैं। 

ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कला कृति हैं वह, यह भी भूल गया..!

तुमने बहुत कोशिश की, पर फिर भी 'कुछ' लोगों से हार गये। वे जो अपनी परवाह न कर तुमसे लोहा लेने को आगे बढ़े। वे जो अपनी संपत्ति बेचकर ज़रूरतमंदों की सहायता कर रहे हैं। वे जो दिन रात एक कर, सहायता पहुँचाने को तत्पर है। ऐसे भी लोग हैं दुनिया में, और ऐसे लोग ही तुम्हें तुम्हारी औकात बताएँगे। कर लो जितना ज़ुल्म चाहो, बिगाड़ दो इंसानों की नस्ल, पर यह मुट्ठीभर लोग अडिग रहकर तुम्हें धता बता रहे हैं। बस कुछ दिन और कर लो मनमानी, तुम्हारे दिन भी चुकने को हैं। तुम्हारे पाँव अब उखड़ने को है। रात कितनी भी काली हो, भोर नही रुकती । अब भी नही रुकेगी। बाँधो अपना बोरिया बिस्तर और हो जाओ दफा। बस कुछ दिन और..!

हफ्ता दो हफ्ता..!

चलते बनो। जब तक  निस्वार्थ लोग इस दुनिया में रहेंगे, बड़ी से बड़ी आपदा के पाँव उखड़ जाएँगे। 

तुम भी कूच की तैयारी करो..!


सरस दरबारी


2 comments:

  1. चलते बनो। जब तक निस्वार्थ लोग इस दुनिया में रहेंगे, बड़ी से बड़ी आपदा के पाँव उखड़ जाएँगे।

    बिल्कुल , बिना धमकी के काम नहीं होने वाला । दोनो समय का सटीक विश्लेषण ।।

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    1. यकीनन..संगीता जी..!

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