Monday, June 24, 2013

हथेलियाँ





यह हथेलियाँ...सच्ची हमदर्द होती हैं
बिना कहे हर बात जान लेती हैं
हर आह...हर सिसकी घुल जाती है इन लकीरों में
जब थके चेहरे को ...वजूद से अपने ढाँप लेती हैं -

दुखते रहते जब थकी पलकों के फाये हैं -
नर्म गदेलियों से हर दर्द वह सोख लेती हैं -
दर्द हजारों जो पपोटों में छिपे बैठे हैं -
उन्हें टूटकर बहने को ज़मीं देती हैं -

जग की रुसवाइयां  जब हद से गुज़र जाती हैं
हिचकियों को वह आँचल में भींच लेती हैं
या परास्त, थकी किस्मत की लकीरों को
फिरसे सहलाकर ..जीने की दिशा देती हैं-

सिर्फ ऐसा नहीं की दुःख ही वह साझा करतीं
हर ख़ुशी में भी साथ देती हैं
शर्म से लाल हो गए गालों को
मोहब्बत भरी आगोश में पनाह देती हैं ...!!!!

Sunday, June 16, 2013

शब्द ही तो हैं .....



हमें और कितना
तोड़ोगे -
मरोड़ोगे-
हमारी सहजता को द्विअर्थी जामा पहना-
और कितना तिरस्कृत करोगे ...!

यूँ तो एक अबोध बालक भी
अपनी हर बात कह लेता है
एक मूक जानवर
अपनी हर ज़रुरत जता देता है,
फिर शब्दों की क्या दरकार...!

हमारी उत्पत्ति, तुम्हारे लिए ही हुई ...
विचारों को बांटने के लिए-
अपनी बात समझाने के लिए
एक सभ्य समाज के निर्माण के लिए
लेकिन तुमने -
हमारा दुरूपयोग किया..!
हमसे अपना वर्चस्व स्थापित कर
हमीं पर लांछन गढ़ दिया -
कभी लोगों को बरगलाया
झूठे वादों में उन्हें उलझाया
और अर्थों का अनर्थ कर डाला.
जानते थे प्यार की ताक़त को
तुमने फिर भी ज़हर फैलाया
मनों में.....  
सीमाओं पर उसे बोया
और हमको परास्त किया ...!

सुनो ...
अब भी मानो
हमें पहचानो
हम कुछ भी कर सकते हैं
हर ज़ुल्म से दो हाथ कर सकते हैं -
हमें बेचारा ...कमज़ोर, न समझना
हम सियासत का रुख बदल सकते हैं ...!!!