Monday, December 8, 2014

समाधान हमारे हाथ में है ............




एक कहानी पढ़ी थी कभी -
दूर देश की किसी अनजान सड़क पर एक पुरुष रास्ता पार करने के लिए खड़ा था . गाड़ियों का रेला ख़त्म ही नहीं हो रहा था - तभी उसने एक वृद्ध महिला को देखा जो बड़ी कातर  दृष्टि से इधर उधर किसीको ढूंढ रही थी कि कोई उसे सड़क पार करा दे.पर उससे अनजान सब अपनी ही दौड़ में व्यस्त थे . तभी वह उसकी और बढ़ा. पास जाकर बड़े प्रेम से उसका हाथ थाम उसे सड़क के दूसरी और ले गया . कृतज्ञ नेत्रों से आशिश्ते हुए जब उस  वृद्धाने  उस पुरुष को धन्यवाद कहना चाहा तो वह बोला , " नहीं माजी, मुझे इस बात के लिए धन्यवाद न कहिये , इसमें मेरा ही स्वार्थ था. मैंने तो यह सिर्फ यही सोचकर किया की दूर अपने देश में जब मेरी वृद्धा माँ इसी तरह सड़क पर खड़ी सहायता खोज रही होगी , तब कोई मेरा यह ऋण चुका देगा.
कितना अच्छा हो अगर हमारी सोच भी ऐसी ही हो जाये तब न जाने जीवन की कितनी जटिल समस्याओं का समाधान निकल आये .
आज के दौर में हर परिवार अपनी बेटी अपनी बहु की सुरक्षा को लेकर चिंतित है . बेटियाँ जब तक घर नहीं लौट आतीं एक अनजानी आशंका, एक वीभत्स डर घेरे रहता है हमें जिसे हम खुद को आश्वस्त कर, बार बार परे धकेलते रहते हैं. आशंकाएं फिर भी सुगबुगाती रहती हैं भीतर.
अक्सर ऐसी खबरें पढने सुनने में आतीं हैं की यात्रियों से भरी बस या ट्रेन में कुछ शोहदे किसी लड़की को छेड़ रहे थे और कोई बीच बचाव नहीं कर रहा था ........क्यों .......”.क्योंकि वह हमारी रिश्तेदार थोड़ी है ..हम क्यों पचड़े में पड़े ...जान है तो जहाँ है भाई .....शांत बैठो ”. पर उसके बाद कितनी असंतुष्टि, स्वयं के प्रति कितनी हिकारत महसूस करते हैं हम.
बस यही सोच बदल जाये तो हमारे समाज की बहू-बेटियाँ सुरक्षित हो जाये . जब कोई वारदात होती है और भीड़ के बीच होती है तो उस वक़्त वह भीड़ ही उस वारदात को होने से रोक सकती है बशर्ते उस भीड़ में भी यह जज्बा हो. आखिर उन मुट्ठीभर लफंगों की क्या मजाल की वे कोई अश्लील हरकत करें. उन्हें अपनी शामत बुलानी है क्या.
उस युवती के आपत्ति उठाने पर अगर सारी भीड़ सचेत हो जाये और उन लफंगों को धुन डालें तो दोबारा ऐसी कोई हरकत करने की उनकी हिम्मत नहीं होगी. और अगली बार उसकी निरर्थकता भांपकर खुद ही उस जोखिम से गुरेज़ करेंगे.
आज आप किसी की बेटी को बचाएँगे तो हो सकता है खुदा न खास्ता कल जब आपकी बेटी असुरक्षित होगी, तो कोई न कोई ईश्वर का भेजा फ़रिश्ता वहां मौजूद होगा उसकी रक्षा करने के लिए क्योंकि कोई भी सवाब ज़ाया नहीं जाता. कोई भी पुण्य कभी बेकार नहीं होता .
क्या यह विश्वास ही पर्याप्त नहीं है कि हम खुद सड़क चलती हर लड़की की सुरक्षा  का बीड़ा उठाएँ? जब कोई अनहोनी घटते देखें तो पूरे बलसे उसका प्रतिकार करें..?
विश्वास कीजिये सिर्फ यही जज़्बा काफ़ी है स्त्रियों की सुरक्षा के लिए और ऐसा करने से जो संतुष्टि मिलेगी उसका तो कोई मोल ही नहीं ........और अपनी नज़रों में जो हम उठ जायेंगे ....सो अलघ .

सरस दरबारी
 

  

15 comments:

  1. सार्थक सन्देश देता बहुत ही बढ़िया आलेख ! वाकई जब हर व्यक्ति में सामाजिक दायित्वों के प्रति इतनी जागरूकता पैदा हो जायेगी तो महिलाओं की असुरक्षा पर कुछ हद तक तो काबू पाया ही जा सकता है ! लेकिन कहीं न कहीं लड़कियों को भी कुसंस्कारों से बचना होगा ! हाल की हरियाणा की दो बहनों की कहानी जो बस में लड़कों से मार पीट कर रहीं थीं चौंकाने वाली है ! एक महिला जो वीडियो बना रही थी वह भी शायद उनसे मिली हुई थी ! ऐसे लोगों से बचने के लिये ही लोग तटस्थता ओढ़ लेते हैं ! और ऐसे लोगों के कारण ही वे लड़कियाँ भी सहायता से वंचित रह जाती हैं जो वास्तव में मुसीबत से घिरी होती हैं और जिन्हें वाकई में मदद की ज़रूरत होती है !

    ReplyDelete
    Replies
    1. औरतों के साथ ज्यादितियों की वारदातें लगभग रोज़ पढने में आती है ...और लोगों को उन पीड़ितों के प्रति सहानुभूति भी होती है ...पर इन दो युवतियों की करनी ने इतनी गंभीर समस्या का मखौल उड़ा कर रख दिया है ......वैसे ही लोग आगे आने से कतराते थे अब इस हादसे के बाद तो उन्हें दो कदम और पीछे जाने का मौका मिल गया ...और उनकी इस करतूत ने इतनी गंभीर समस्या के प्रति जागृत सारी संवेदनाओं और उनमें सुधार लाने की तमाम कोशिशों के पंख कुतर कर रख दिए

      Delete
  2. रचना को 'चर्चा मंच' पर स्थान देने के लिए आपका हार्दिक आभार रविकर जी

    ReplyDelete
  3. आलेख को 'चर्चा मंच' पर स्थान देने के लिए हार्दिक आभार रविकर जी

    ReplyDelete
  4. बहुत बहुत आभार यशोदा जी

    ReplyDelete
  5. दो लड़कियों की उस कहानी में क्या सच है, क्या झूठ पता नहीं. पर यह लेख बेहद सार्थक है. बदलाव तभी संभव है जब हर एक अपनी जिम्मेदारियां समझे.

    ReplyDelete
  6. हमें अपनी सोच बदलनी होगी और इसके लिए स्वयं आगे आना होगा..बहुत सारगर्भित आलेख...

    ReplyDelete
  7. हमारी सोच के साथ-साथ हमारे रक्षक पुलिश को भी बदलने की आवश्यकता है ल विस्मित हूँ !

    ReplyDelete
  8. सार्थक और सच लिखा है ... जहां भी हों आगे आना चाहिए, मदद के लिए, बचाव के इए ... जब ऐसा चरित्र बनेगा तो समस्या अपने आप सुलझेगी ...

    ReplyDelete
  9. सच कहा , ऐसा जज्बा सबमें हो तो फिर बुरी मानसिकता पर लगाम अवश्य लगेगी .

    ReplyDelete
  10. एक सार्थक सोच विश्व शांति और प्रेम का सन्देश देती

    ReplyDelete
  11. आपकी बात बिलकुल दुरुस्त है -माना भी यही जाता है कि कर भला तो हो भला .पर हमारे देश में लोगों की संवेदनाएँ कुंठित हो गई हैं .लड़को-भड़कों की तो बात ही छोड़िए ,वयोवृद्ध लोग भी ऐसे आपत्तिजनक व्यवहार देख कर खड़े हो और विरोध मं पुकार करने लगें तो लोग चेतेंगे उनका साथ भी देंगे .और बदमाशों का मनोबल गिरेगा और साहस नहीं बढ़ेगा .

    ReplyDelete
  12. काश ये अहसास सब के मन में हो तो समाज कितना सुन्दर हो जायेगा .

    ReplyDelete