Saturday, November 7, 2020

विस्फोट


विस्फोट यूँहीं नही हुआ करते..

सब्र का ईंधन

भावनाओं का ताप

आक्रोश का ऑक्सीजन

जब मिलते हैं

सब्र गड़गड़ाता है

भावनाएँ खदबदाती हैं

आक्रोश धूल, गारे की शक्ल में

आसमान स्याह कर देता है

तब होता है विस्फोट..

जब भूख मुँह चिढ़ाती है

मक्कारी 

हर दौड़ जीत जाती है

और सच 

बैसाखियाँ साधता रह जाता है

तब होता है विस्फोट…


जब बिलबिलाती जनता को

 महलों से रानी फरमान सुनाती है

रोटी नही तो केक खा लो

राजा की बग्घी तले मासूम

दौड़ाकर कुचले जाते हैं

तब होता है विस्फोट…

तब होती है क्रांति

झुलस जाता है ऐशो आराम

झूल जाती है बादशाहत..

फाँसी के फन्दों पर

बुनाई करते हुए

गिनती जाती है

सताई हुई जनता

कटते हुए सिर

बच्चों, बूढ़ों, स्त्रियों के…

वहशियत नमूदार होती है फिरसे

अलग रूप में 

अलग पलड़े पर

होता है एक और विस्फ़ोट

तबाह करता हुआ

नसलें

इंसानियत

और

खुदा का खौफ...!


सरस दरबारी


18 comments:

  1. i really like it this is amazing post keep it upgoogle-analytic-hindi

    ReplyDelete
  2. बहुत विचारपूर्ण रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया जेनी जी ...:)

      Delete
  3. Replies
    1. शुक्रिया शिवम जी

      Delete
  4. सुंदर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  5. Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया शरद जी ...:)

      Delete
  6. बहुत खूब!! विस्फोट का सटीक विश्लेषण करती रचना, शुभकामनाएं सरस जी.

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार रेणु जी ...:)

      Delete
  7. बेहतरीन सृजन ।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर आभार अनीता जी

      Delete
  8. बहुत भूत शुक्रिया दिव्या जी ...:)

    ReplyDelete
  9. आपका सादर आभार आद रवीद्र यादव जी

    ReplyDelete
  10. great post
    https://lingerdigital.com/how-to-motivate-yourself/

    ReplyDelete