Monday, August 12, 2013

क्षणिकाएं - (५)



बे वजूद रिश्ते

न जाने कितने रिश्ते
अनाम रह जाते हैं
जीते हैं...बिना वजूद के
यादों में-
टंगे रहते हैं दीवारों पर , तस्वीरों की भीड़ में -
मरते नहीं कभी
न कभी ख़त्म होते हैं
बस , कभी कभी
किसी आह....
किसी सिसकी.....
या कोरों में ठिठकी
नमी में सांस ले लेते हैं
यदा कदा ..!!!!

किरचें

अभी अभी कुछ दरका
पर आवाज़ नहीं हुई
मैंने टुकड़े बुहार दिए
लेकिन कुछ किरचें
दरारों..
अनदेखे कोनों में छिपी रह गयीं -
जो अचक्के में भेदकर
लहू लुहान कर गयीं
भीतर तक..!!!!

17 comments:

  1. रिश्ते और किरचे से हमेशा सावधानी रखने की जरुरत है
    latest post नेता उवाच !!!
    latest post नेताजी सुनिए !!!

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  2. बहुत ही उम्दा क्षणिकाए ,,,बधाई

    RECENT POST : जिन्दगी.

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  3. खूबसूरत क्षणिकाएं ... बधाई !!

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  4. रिश्ता है तो कोई तो नाम भी होगा .... ...यादों में हैं ,तो वजूद तो है ही .....हाँ यादें ज़रूर आँख नाम कर जातीं हैं यदा कदा......ये जीवन है .....बहुत सुंदर लिखा है सरस जी ...........!!
    किरचों का दर्द जैसे महसूस हो रहा है ........बहुत गहन अभिव्यक्ति ...!!

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  5. bahut hi shandaar baat.............kircho sy dard to hota hi hai............

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  6. यादें रहती हैं आसपास ... रिश्ते सांस लेते हैं ...
    और किरचें लहुलुहान करने पर भी चुभी रहती हैं उम्र भर ....

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  7. बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ है !

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  8. वाह बहुत बढ़िया । गहन, सुन्दर , शानदार |

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  9. मन की गहरी सतहों में क्या-क्या छिपा है कौन जाने !

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  10. आह....चुभा कुछ..मगर अच्‍छा लगा

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  11. बेवजूद रिश्ते और किरचे सदा कसकते हैं आपने ज़िन्दगी को करीब से महसूस किया है

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  12. रिश्तों और किरचो की चुबन ....भावुक अहसास !

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  13. बेहतरीन रचना ...

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  14. बुहारने के बाद भी रह ही जाती हैं किरचें ... बहुत भावप्रवण क्षणिका ...

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