Sunday, May 20, 2012

अतिप्रिय






रोज़ की तरह ,आज भी
वह खतरों को टोहता हुआ , बढ़ गया
और फ़ेंक गया एक कंकर
अंत:स के कई अनबूझे प्रश्नों में .

कई प्रश्न.............जैसे .

क्या सोचता होगा वह !
शायद शीश को कुछ ऊपर उठाये -
पूछता होगा इश्वर से -
क्यों छीना मुझसे मेरा उजास
और ठेल दी ,
एक अंतहीन निशा मेरी ओर...!
क्या मैं तुम्हे प्रिय न था ...?

या फिर .....
क्या है उसका 'उजास'.....
कोयल की बोली .....?
लहरों का स्पर्श ......?
बारिश की फुहार.....?
या विगत स्मृतियाँ ..?

ऐसे में याद आ जाता है
वह सहपाठी ...
NSS के छात्रों से घिरा  हुआ...
हम बारी बारीसे  उसे नोट्स पढ़कर सुनाते-
और वह उन्हें ब्रेल में लिखता जाता -
'स्लेट' और 'स्टाईलस' पर 
यंत्रवत , दायें से बाएँ चलती उँगलियाँ -
हमारा कहा जज़्ब करती जातीं
और बाएँ से दायें
उभरे हुए बिन्दुओं का स्पर्श कर
आत्मसात करती जातीं -
अद्भुत !!!!

ऐसे ही एक दिन ठिठोली में -
हमने , उसके मानस में अंकित,
 अपनी छवियों को टटोला था  !
और फिर एक एक कर उसने हमारे व्यक्तित्वों को उकेरा था -

स्तब्ध थे हम सब !!!!!

कैसे नहीं देख पाए थे हम -
जो उसके सहज मन ने पहचाना था ....!
क्या परस्पर द्वेष, व्यक्तिगत हितों ने
असलियत को नकारकर -
हमें आधा सच दिखाया था-
उस दिन इश्वर से खुद को दूर पाया था -
और उसे उनका अतिप्रिय ....!!!!!!!